Kaila Devi Temple कैला देवी मंदिर – Complete Travel Guide in Hindi

कैला देवी मंदिर – इतिहास, मान्यता, यात्रा गाइड

Kaila Devi Temple Karoli Rajasthan Photo

कैलादेवी मंदिर का परिचय

कैलादेवी मंदिर राजस्थान के करौली जिले में स्थित एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। यह मंदिर माता दुर्गा के काले स्वरूप ‘कैलादेवी’ को समर्पित है। यह जगह चंबल नदी के किनारे अरावली की पहाड़ियों में बसी है और इसे भारत के 9 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है।

यहाँ हर साल लाखों श्रद्धालु दूर-दूर से माता के दर्शन के लिए आते हैं। चैत्र माह में लगने वाला कैलादेवी का मेला देशभर में प्रसिद्ध है।


पौराणिक कथा और इतिहास

कैलादेवी माता मंदिर का इतिहास बेहद प्राचीन और आस्था से जुड़ा है। माता कैलादेवी को देवी महाकाली और भगवान श्रीकृष्ण की बहन योगमाया का अवतार माना जाता है। मान्यता है कि त्रेतायुग में श्रीकृष्ण ने अपनी बहन को आशीर्वाद दिया था कि वे भविष्य में पृथ्वी पर राक्षसों के विनाश के लिए अवतरित होंगी। महाभारत काल में अर्जुन ने भी माता कैलादेवी की तपस्या कर विजयश्री प्राप्त की थी।

कैलादेवी मंदिर की स्थापना करौली के राजा अरुण पाल ने लगभग 1100 ईस्वी में कराई थी। कहा जाता है कि राजा अरुण पाल को स्वप्न में माता ने दर्शन देकर इस स्थान पर मूर्ति स्थापना की आज्ञा दी थी। बाद में 18वीं शताब्दी में राजा गोपाल सिंह ने भी स्वप्न में माता के दर्शन पाकर जंगल से माता की मूर्ति को बैलगाड़ी में रखकर वर्तमान स्थान तक लाया। मान्यता है कि जहाँ बैलगाड़ी रुकी, वहीं मंदिर स्थापित कर दिया गया।

चंबल नदी के किनारे स्थित यह मंदिर करौली राजघराने की कुलदेवी का मंदिर माना जाता है। यहाँ हर साल चैत्र नवरात्रि में विशाल मेला लगता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए आते हैं।

कैलादेवी माता की मूर्ति की विशेषता

कैलादेवी माता की मूर्ति की गर्दन हल्की तिरछी (तिरछी गर्दन वाली माता) होने का विशेष महत्व माना जाता है।

क्यों है गर्दन तिरछी?

लोककथाओं और मान्यता के अनुसार, माता कैलादेवी की मूर्ति स्वयंभू (स्वयं प्रकट) मानी जाती है।
मान्यता है कि जब मूर्ति जंगल से लाकर बैलगाड़ी पर रखी गई थी और जहाँ बैलगाड़ी रुकी वहीं स्थापना हुई, उस समय मूर्ति को स्थापित करते समय मूर्ति की गर्दन स्वयमेव थोड़ी झुक गई थी।
यह झुकाव माता के करुणामयी और दयालु स्वरूप का प्रतीक माना जाता है — कि माता अपने भक्तों की ओर झुक कर उनकी पुकार सुनती हैं।

कुछ मान्यता यह भी कहती है कि यह झुकाव योगमाया स्वरूप की पहचान भी है। कहते हैं, देवी ने अर्जुन को दर्शन देते समय भी गर्दन झुकाकर करुणा और आशीर्वाद का संकेत दिया था।

धार्मिक दृष्टि से — यह प्रतीकात्मक है कि माँ अपने भक्तों पर सदा कृपा दृष्टि बनाए रखती हैं, चाहे वे कहीं भी हों।


मंदिर की वास्तुकला

कैलादेवी मंदिर सुंदर लाल पत्थरों से निर्मित है। इसमें मुख्य गर्भगृह में माता की काले पत्थर की मूर्ति है जो अत्यंत दिव्य और आकर्षक है। मंदिर परिसर में भैरों बाबा और चम्बल नदी के तट भी श्रद्धालुओं के लिए विशेष आस्था के केंद्र हैं।


दर्शन और आरती समय

  • मंदिर खुलने का समय: प्रातः 4:00 बजे
  • मंदिर बंद होने का समय: रात्रि 9:00 बजे तक
  • विशेष आरती: भोर में मंगला आरती और संध्या आरती के समय भीड़ अधिक रहती है।
  • मेला विशेष: चैत्र मास में नवरात्रि के समय विशाल मेला लगता है, जो 15 दिन चलता है।

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कैसे पहुँचें

  • रेल मार्ग: नजदीकी रेलवे स्टेशन करौली, गंगापुर सिटी और हिण्डौन सिटी हैं, जहाँ से टैक्सी या बस से मंदिर पहुँचा जा सकता है।
  • हवाई मार्ग: नजदीकी एयरपोर्ट जयपुर (160 km)।
  • सड़क मार्ग: राजस्थान रोडवेज की बसें करौली से कैलादेवी मंदिर तक नियमित चलती हैं। निजी वाहन से भी पहुँचना आसान है।


कहाँ ठहरें

कैलादेवी आने वाले श्रद्धालुओं के लिए मंदिर ट्रस्ट द्वारा धर्मशालाएँ, अतिथि गृह और आसपास कई बजट होटल्स उपलब्ध हैं। मेले के दौरान यहाँ advance booking जरूरी रहती है।

अगर आप मंदिर के पास होटल ढूंढना चाहते हैं, तो यहाँ क्लिक करके Google पर खोजें।


आसपास के दर्शनीय स्थल

  • मदन मोहन जी मंदिर
  • भंवर विलास पैलेस
  • कैलादेवी सेंचुरी
  • सिटी पैलेस


यात्रा सुझाव और सावधानियाँ

  • गर्मियों में हल्के कपड़े और पानी साथ रखें।
  • मेले में भारी भीड़ रहती है, इसलिए बच्चों और बुजुर्गों का विशेष ध्यान रखें।
  • मंदिर में साफ-सफाई और अनुशासन बनाए रखें।


Location of Kaila Devi Mandir - Karauli, Rajasthan




Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं और सार्वजनिक स्रोतों पर आधारित है। कृपया किसी भी यात्रा या पूजा से पहले मंदिर ट्रस्ट से सही जानकारी प्राप्त करें। इस ब्लॉग का उद्देश्य केवल जानकारी उपलब्ध कराना है।

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